नयी दिल्ली, 18 जनवरी (भाषा) आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वी ईश्वरैया ने उच्चतम न्यायालय में आरोप लगाया है कि शीर्ष अदालत के एक ‘वरिष्ठ पीठासीन न्यायाधीश के रिश्तेदार अमरावती भूमि घोटाले के ‘बेनामी सौदे’ में शामिल हैं तथा वह इस बारे में और साक्ष्य जुटाने का प्रयास कर रहे थे।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ईश्वरैया ने न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में कहा है कि उन्होंने इस बेनामी सौदे के बारे में निलंबित न्यायिक अधिकारी से फोन पर बातचीत में जानकारी मांगी थी जो कथित रूप से राज्य की नयी राजधानी क्षेत्र में भूमि सौदों को लेकर भ्रष्टाचार से संबंधित थी।
इस पूर्व न्यायाधीश ने उनके और निलंबित न्यायिक अधिकारी के बीच हुयी इस कथित वार्ता की जांच का निर्देश देने के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के 13 अगस्त, 2020 के आदेश के खिलाफ एक याचिका दायर कर रखी है। इसी मामले में न्यायमूर्ति ईश्वरैया ने यह हलफनामा दाखिल किया है।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दाखिल इस हलफनामे में कहा गया है, ‘‘मैं यह कहता हूं कि पीठासीन न्यायाधीश के आचरण के बारे में सामग्री (अगर उपलब्ध है) मांगने को, जो मेरी जानकारी के अनुसार जांच का विषय है, किसी भी तरह से साजिश नहीं कहा जा सकता। मैं कहना चाहता हूं कि मैंने रामकृष्ण (निलंबित जिला मुंसिफ) के साथ फोन पर बातचीत में उच्चतम न्यायालय के उक्त न्यायाधीश की संलिप्तता के बारे में जानकारी और सामग्री मांगी थी।’’
पूर्व न्यायाधीश ईश्वरैया ने कहा है, ‘‘उच्चतम न्यायालय के एक वरिष्ठ पीठासीन न्यायाधीश के रिश्तेदारों की इन सौदों में संलिप्तता के बारे में जानकारी मुझे मिली थी और मैं इस संबंध में और साक्ष्य एकत्र करने के प्रयास कर रहा था।’’
शीर्ष अदालत ने 11 जनवरी को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ईश्वरैया को निलंबित जिला मुंसिफ के साथ अपनी वार्ता के बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुये हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सेामवार को यह मामला सुनवाई के लिये आया। पीठ ने इसे फरवरी के प्रथम सप्ताह के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
न्यायमूर्ति ईश्वरैया ने कहा कि रामकृष्ण के साथ उनकी निजी बातचीत की स्वीकरोक्ति या इंकार का इस याचिका पर निर्णय लेने से कोई संबंध नहीं है क्योंकि उच्च न्यायालय के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गयी है कि ‘‘यह मेरे निजता के अधिकार का हनन होने के साथ ही कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है।’’ उनका तर्क है कि संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 (1)(ए) के अंतर्गत यह मौलिक अधिकार है।
हलफनामे में उन्होंने कहा है, ‘‘मैंने कोई अपराध नहीं किया है और इस निजी बातचीत के बारे में किसी ने कोई शिकायत भी नहीं की है।’’ उन्होंने कहा कि रामकृष्ण द्वारा उच्च न्यायालय में दायर पेनड्राइव में शामिल आडियो वार्ता की अंग्रेजी लिपि ‘सही नहीं है’ और इस बातचीत के बारे में झूठी और गुमराह करने वाली धारणा पैदा करने की मंशा से जानबूझ कर इसे तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है।
हलफनामे के अनुसार, ‘‘मैं कहता हूं कि जहां तक मुझे याद है कि निलंबित जिला मुंसिफ रामकृष्ण के साथ मेरी बातचीत तीन बार हुयी। पहली बातचीत में मैंने उसके निलंबन के बारे में जानकारी चाही। दूसरी बार, मैंने उसे इस परेशानी का सामना करने की वजह से ढाढ़स बंधाया और अंतिम बार, मैंने आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी क्षेत्र में बेनामी सौदों के बारे में उससे जानकारी मांगी जो मेरी जानकारी के अनुसार मंत्रिपरिषद की उप समिति के विचाराधीन थी जिसने बाद में इसकी जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करने की सिफारिश की थी और जिस पर बाद में राज्य सरकार ने इसकी जांच सीबीआई को सौंपने के बारे में केन्द्रीय कार्मिक एवं शिकायत मंत्रालय को पत्र लिखा था क्योंकि यह अनेक उच्च स्तरीय प्रभावशाली व्यक्तियों की जांच से जुड़ा मामला था।’’
न्यायालय ने 11 जनवरी को पूर्व न्यायाधीश वी ईश्वरैया और एक निलंबित मुंसिफ मजिस्ट्रेट के बीच टेलीफोन पर हुयी कथित वार्ता की जांच के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने पिछले साल 13 अगस्त को अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायााधीश आर वी रवीन्द्रन से इसकी जांच करने का अनुरोध किया था।
न्यायमूर्ति ईश्वरैया ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि यह न्यायपालिका के खिलाफ ‘बहुत गंभीर साजिश’ की घटना है।
याचिका में उच्च न्यायालय के जांच के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुये कहा गया है कि यह ‘अनावश्यक और गैरकानूनी’ था और न्यायमूर्ति ईश्वरैया का पक्ष सुने बगैर ही यह पारित किया गया है। इससे न्यायमूर्ति ईश्वरैया को अनावश्यक परेशानी हुयी है।
पूर्व न्यायाधीश का कहना है कि उच्च न्यायालय का आदेश अदालत की इमारत और परिसर में कोविड दिशानिर्देश लागू करने से संबंधित असम्बद्ध जनहित याचिका को फिर से खोलने और इसमें हस्तक्षेप करने के लिये निलंबित जिला मुंसिफ मजिस्ट्रेट (एस रामाकृष्ण) के आवेदन के आधार पर दिया गया है।
आंध्र प्रदेश की वाई एस जगन मोहन रेड्डी सरकार ने चंद्रबाबू नायडू सरकार के कार्यकाल के दौरान अमरावती राजधानी क्षेत्र में कथित अनियमित्ताओं, विशेषकर भूमि सौदे, की व्यापक जांच के लिये पिछले साल 21 फरवरी को पुलिस उप महानिरीक्षक रैंक के आईपीएस अधिकारी की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय विशेष जांच दल गठित किया था।
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अनूप मनीषा
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