भोपाल। एमपी अजब है सबसे गजब है। मध्य प्रदेश टूरिज्म का ये सलोग्न ऐसे ही नहीं फेमस है। प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत काफी शानदार है। यहां अनेक बोलियां बोली जाती हैं और अनेक परंपराओं को मानने वाले लोग हैं। ऐसी ही एक अजब गजब परंपरा को मानते हैं बैतूल जिले के रज्झड़ समाज (Rajjar community) के लोग। जहां वे कांटों के बिस्तर पर सोते हैं। इस पर्व को भोंडाई कहा जाता है।
नाहल से शर्त हार गए थे पांडव
दरअसल, रज्झड़ समुदाय के लोग खुद को पाडंवों का वंशज (Descendant of pandavas) मानते हैं और परंपरा के अनुसार भोंडाई पर्व (Bhondai festival) के दौरान कांटों के बिस्तर पर लोटते हैं। उनका मानना है कि पांडव एक बार जंगल में गए थे। जहां उन्हें तेज प्यास लग गई थी। वो जंगल में पानी के लिए भटकने लगे, लेकिन उन्हें कहीं भी पानी नहीं मिला। वे पानी की खोज में दूर तक चले गए। तभी उनकी मुलाकात भिलवा इकट्ठा करते हुए एक नाहल से हुई। पाडंवों ने उनसे पानी मांगा। लेकिन नाहल ने पानी देने से पहले पांडवों से एक शर्त रख दिया। उसने उनकी बहन भोंदई बाई (Bhondai Bai) का हाथ मांग लिया। पांडव इतने प्यासे थे कि वे न चाहते हुए भी नाहल की बात मान ली। नाहल ने भी अपने शर्त के अनुसार पांडवों को पानी पिलाया।
गम मनाते हैं रज्झड़ समुदाय के लोग
तब से ही अगहन मास मे पुरे पांच दिन रज्झड़ समुदाय के लोग इस वाकये को याद करते हुए गम मनाते हैं कि उन्हें अपनी बहन को नाहल के साथ विदा करना पड़ा था और वे कांटों के बिस्तर पर लोटते हैं। हालांकि उन्हें इस बात की भी खुशी होती है कि वे पांडवों के वंशज हैं।
आज भी विदा होती है भोंदई बाई
परंपरा के अनुसार गांव के लोग शाम के वक्त इकट्ठे होकर कंटीली झाडियो को लेकर आते हैं। फिर उसे मंदिर के आगे बिछा दिया जाता है। कांटों के बिस्तर पर सोने से पहले उस पर हल्दी का घोल डाला जाता है। इसके बाद गांव के लोग एक-एक करके उस बिस्तर पर लोटते हैं। साथ ही परंपरा के अनुसार गांव की एक महिला को भोंदई बाई बना कर विदा करने की रस्म पूरी की जाती है। महिलाएं इस दौरान बेटी की विदाई के गम में रोती हैं। वहीं कुछ लोग इस पर्व को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है परंपरा
पुरानी परम्पराओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पंहुचा रहे रज्जढ़ो की ये रस्म अब बैतूल के दर्जनों गांवो में देखने को मिलती है, जहां ये लोग कांटो पर लोटते है।