नयी दिल्ली, छह जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था में कहा है कि मुआवजे से संबंधित मामले, विशेषकर सड़क दुर्घटनाओं के दावों, में गृहणियों की काल्पनिक आमदनी निर्धारित किया जाना समाज के लिये यह संकेत है कि कानून और अदालतें उनके परिश्रम, सेवाओं और त्याग का महत्व समझते हैं।
शीर्ष अदालत ने एक सर्वे को उद्धृत करते हुये कहा है कि महिलायें घर के सदस्यों को बगैर पारिश्रमिक के सेवायें देने में पुरूषों की तुलना में कहीं ज्यादा समय देती हैं।
न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि गृहणियों को आर्थिक आधार पर मुआवजा देने के लिये कानून की स्थापित व्यवस्था है।
सड़क दुर्घटना में गृहणियों के पीड़ित होने के मामले में न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि गृहणियों की काल्पनिक आमदनी निर्धारित करना उन महिलाओं के योगदान का सम्मान करना है जो स्वेच्छा से या सामाजिक/सांस्कृतिक मानकों की वजह से यह काम कर रहीं हैं।
पीठ ने सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाली दंपत्ति की दो पुत्रियों और एक अभिभावक की अपील पर फैसला सुनाते हुये दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय में सुधार कर दिया। न्यायालय ने निर्धारित मुआवजे की राशि में 11.20 लाख रूपए की वृद्धि करते हुये इसे 33.20 लाख रूपए कर दिया।
उच्च न्यायालय ने इस मामले में दुर्घटना दावा अधिकरण द्वारा निर्धारित मुआवजे की राशि 40.71 लाख रूपए से कम कर दी थी। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि इस दुर्घटना में जान गंवाने वाले महिला गृहणी थी और वह आमदनी अर्जित करने वाली सदस्य नहीं थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि विस्तृत दुर्घटना रिपोर्ट दाखिल करने की तारीख 23 मई, 2014 से नौ फीसदी सालाना ब्याज के साथ दो महीने के भीतर मुआवजे की बढ़ी हुयी राशि का भुगतान करना होगा।
न्यायालय ने कहा कि लैंगिक किस्म के गृह कार्यो को ध्यान में रखते हुये, जिसमे पुरूषों की तुलना में महिलाओं का प्रतिशत बहुत ज्यादा है, महिलाओं के लिये काल्पनिक आमदनी निर्धारित करना एक विशेष महत्व रखता है।
पीठ ने कहा, ‘‘यह गृहणियों के काम, परिश्रम और त्याग का सम्मान और बदलते दृष्टिकोण का परिचायक है। यह हमारे देश के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों और सामाजिक समता के हमारे संवैधानिक दृष्टिकोण को सुदृढ़ करता है और सभी के लिये सम्मान सुनिश्चित करता है।’’
काल्पनिक आय निर्धारित करने के सवाल पर पीठ ने कहा कि इसके लिए अदालत कई तरीके अपना सकती हैं। यह मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
न्यायालय ने कहा कि अदालत को इसके लिये तरीके का चयन करते और काल्पनिक आमदनी निर्धारित करते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह मामले विशेष के तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर न्यायोचित हो। मुआवजा निर्धारित करते समय बहुत ज्यादा संकीर्णता या बहुत ज्यादा उदारता नहीं होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति रमण ने सड़क दुर्घटना के शिकार परिवार के सदस्यों के लिये मुआवजा निर्धारित करने के मामले में अन्य न्यायाधीशों से सहमति व्यक्त करते हुये अपना अलग फैसला लिखा और कहा कि अब भविष्य में अदालत को जीवन की वास्तविकता, खासकर मंहगाई, लोगों की परिस्थितियों को बेहतर बनाने , पारिश्रमिक की बढ़ती दरों और काम की गुणवत्ता में अनुभव के असर को मुआवजा निर्धारित करते समय ध्यान में रखना होगा।
पीठ ने आगे कहा कि गृहणियों की काल्पनिक आमदनी का निर्धारण करना बहुत ही महत्वपूर्ण काम है और यह सर्वत्र स्वीकार्य विचार है कि वास्तविक जीवन में इन गतिविधियों का परिवार की आर्थिक स्थिति और देश की आर्थिक स्थित में महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
पीठ ने कहा कि काल्पनिक आमदनी की गणना के लिए मोटर वाहन कानून, 1988 में प्रदत्त एक फार्मूले का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसके अनुसार जीवन साथी की आमदनी की गणना जीवित बचे साथी की आय के एक तिहाई हिस्से को जीवन साथी की आय माना जा सकता है।
पीठ ने कहा कि चूंकि इसकी गणना के लिये कोई निर्धारित फार्मूला नहीं बनाया जा सकता है, इसलिए ऐसे मामलों में अदालतों का प्रयास यथासंभव सर्वश्रेष्ठ मुआवजे का निर्धारण करने का होना चाहिए।
न्यायालय ने अपने फैसले में केन्द्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट ‘‘टाइम यूज इन इंडिया 2019’’ का जिक्र किया। देश में अपनी तरह के पहले ‘टाइम यूज सर्वे’ में जनवरी से दिसंबर 2019 के दौरान 1,38, 799 घरों के बारे में जानकारी एकत्र की गयी थी। इस सर्वे में कहा गया था कि प्रत्येक महिला बगैर किसी पारिश्रिक के एक दिन में करीब 299 मिनट घरेलू कामों में लगाती है जबकि पुरूष औसतन 97 मिनट ही घर का काम करते हैं।
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