नई दिल्ली। हिंदू धर्म में शांत होने के बाद दाह संस्कार की परंपरा है, लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि (Narendra Giri) की मृत्यु के बाद उन्हें भू समाधि दी गई, ऐसा क्यों किया गया? कई लोग इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर ऐसा क्यों किया गया।
संत परंपरा के अनुसार किया गया अंतिम संस्कार
दरअसल, नरेंद्र गिरी का अंतिम संस्कार संत परंपरा के अनुसार किया गया। सनातन मत के अनुसार, संत परंपरा में तीन तरह से संस्कार होते हैं। इनमें दाह संस्कार, भू-समाधि और जल समाधि शामिल है। कई संतों के दिवंगत हो जाने के बाद वैदिक तरीके से उनका दाह संस्कार किया जाता है। तो कई संतों ने जल समाधि भी ली है लेकिन नदियों में प्रदूषण आदि को ध्यान में रखते हुए अब जल समाधि का प्रचलन कम हो गया है। ऐसे में वैष्णव मत में ज्यादातर संतों को भू-समाधि देने की परंपरा है।
समाधि के लिए उन्होंने खुद लिखा था
बतादें कि नरेंद्र गिरी ने अपने सुइसाइड नोट में खासतौर पर लिखा था कि उन्हें ब्राह्नालीन होने के बाद समाधि दी जाए। उन्होंने उस जगह के बारे में भी जिक्र किया था जहां उन्हें समाधि दी गई है। यानी जिस नींबू के पेड़ को महंत नरेंद्र गिरी ने लगाया था, ठीक उसी के नीचे उन्हें मंगलवार को भू-समाधि दी गई।
समाधि से पहले की तैयारी
जब भी किसी संत को भू-समाधि दी जाती है। इसके लिए सबसे पहले जगह तय की जाती है। फिर विधि-विधान से समाधि को खोदा जाता है। वहां पूजा-पाठ किया जाता है और गंगाजल तथा वैदिक मंत्रों से उस जगह का शुद्धीकरण किया जाता है। भू-समाधि में दिवंगत साधु को समाधि वाली स्थिति में ही बैठाया जाता है। बैठने की इस मुद्रा को सिद्ध योग मुद्रा कहा जाता है। बताते हैं कि संतों को समाधि इसलिए दी जाती है ताकि बाद में उनके अनुयायी अपने आराध्य-गुरु का दर्शन और अनुभव उनकी समाधि स्थल पर कर सकें।
भू-समाधि का इतिहास
भारत में कई संतों ने भू-समाधि ली है। एक मान्यता के अनुसार यह परंपरा 1200 साल से भी ज्यादा पुरानी है। आदिगुरू शंकाराचार्य ने भी भू-समधि ही ली थी और उनकी समाधि केदारनाथ में आज भी मौजूद है। इसके अलावा हरिद्वार में शांतिकुंज के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की समाधि भी सजल श्रद्धा स्थल पर मौजूद है।