नई दिल्ली। हम सभी नोट का इस्तेमाल करते हैं। अगर आप नोट को देखेंगे तो उसके बीच में एक मैटेलिक धागा लगा होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस धागे को क्यों लगााय जाता है और इसकी शुरूआत कैसे हुई। सबसे बड़ा सवाल नोट के बीच में इसे कैसे लगाया जाता है। ये धागा किस चीज से बना होता है? आइए आज जानने की कोशिश करते हैं।
इसका आइडिया इंग्लैंड में आया
बतादें कि करेंसी के बीच मेटेलिक धागे का चलन सुरक्षा मानकों के तौर पर शुरू हुआ। अब तो इस इस चमकीले मैटेलिक धागे पर एक कोड भी लिखा होता है। हिंदी में ‘भारत’ और अंग्रेजी में ‘RBI’ लिखा होता है। ये सब रिवर्स में लिखा होता है, जो नोट के सुरक्षा मानकों को और ज्यादा मजबूत बनाता है। नोट के बीच में मैटेलिक धागे को लगाने का आइडिया 1848 में इंग्लैंड में आया। इंग्लैंड ने तब इसे पेटेंट करा लिया। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि इसे करीब 100 साल बाद लागू किया गया। क्योंकि तब इंग्लैंड में नकली नोट छापने का चलन काफी बढ़ गया था।
नोट में बस एक काली लाइन को छापा जाता था
द इंटरनेशनल बैंक नोट सोसायटी यानि आईबीएनएस (IBNS) के अनुसार दुनिया में सबसे पहले नोट करेंसी के बीच मेटर स्ट्रिप लगाने का काम बैंक ऑफ इंग्लैंड ने 1948 में किया। जब नोट को रोशनी में उठाकर देखा जाता था तो उसके बीच एक काले रंग की लाइन नजर आती थी। माना गया कि ऐसा करने से क्रिमिनल नकली नोट बनाएंगे भी तो वो मैटल थ्रेड नहीं बना सकेंगे। हालांकि, बाद में नकली नोट बनाने वाले नोट के अंदर बस एक साधारण काली लाइन बना देते थे और लोग मूर्ख बन जाते थे।
जालसाजों ने इस तकनीक का भी तोड़ निकाल लिया
1984 में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने 20 पाउंड के नोट में ब्रोकेन यानि टूटे से लगने वाले मेटल के धागे डाले यानि नोट के अंदर ये मैटल का धागा कई लंबे डैसेज को जोड़ता हुआ लगता था। तब ये माना गया कि इसकी तोड़ तो क्रिमिनल्स नहीं निकाल पाएंगे। लेकिन नकली नोट बनाने वाले जालसाजों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। दरअसल, वे अल्यूमिनियम के टूटे हुए धागों को सुपर ग्लू के साथ इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। लोगों को इसे भी पहचान पाना मुश्किल था।
सरकार ने इस सिस्टम को विकसित किया
हालांकि, सरकारों ने भी सेक्युरिटी धागे बनाने के मामले में जालसाजों से हार नहीं मानी और एक ऐसा सिस्टम विकसित किया, जिसमें मेटल की जगह प्लास्टिक स्ट्रिप का इस्तेमाल किया जाता था। 1990 में कई देशों की सरकारों से जुड़े केंद्रीय बैंकों ने नोट में सुरक्षा कोड के तौर पर प्लास्टिक थ्रेड का इस्तेमाल किया। साथ ही थ्रेड पर भी कुछ छपे शब्दों का इस्तेमाल शुरू हुआ। जिसकी नकल अब तक नहीं हो पाई।
इस स्ट्रिप को इस चीज से बनाया जाता है
05, 10, 20 और 50 रुपए के नोट पर भी ऐसी ही पढ़ी जाने वाली स्ट्रिप का इस्तेमाल होता है। ये थ्रेड गांधीजी की पोट्रेट के बायीं ओर की गई। इससे पहले रिजर्व बैंक जिस मैटेलिक स्ट्रिप का इस्तेमाल करता था, उसमें मैटेलिक स्ट्रिप प्लेन होती थी, उसमें कुछ लिखा नहीं था।आमतौर पर बैंक जो मैटेलिक स्ट्रिप का इस्तेमाल करते हैं वो बहुत पतली होती है, ये आमतौर पर M या एल्यूमिनियम की होती है या फिर प्लास्टिक की।
भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल काफी देर से शुरू हुआ
हालांकि, भारत में करेंसी नोटों पर मैटेलिक स्ट्रिप का इस्तेमाल काफी देर से शुरू किया गया लेकिन हमारे देश के नोटों में करेंसी पर जब आप इस मैटेलिक स्ट्रिप को देखेंगे तो ये दो रंगों की नजर आएगी। छोटे नोटों पर ये सुनहरी चमकदार रहती है तो 2000 और 500 के नोटों की ब्रोकेन स्ट्रिप हरे रंग की होती है। हालांकि कुछ देशों के नोटों पर इस स्ट्रिप के रंग लाल भी होते हैं। भारत के बड़े नोटों पर जिस मैटेलिक स्ट्रिप का इस्तेमाल होता है वो सिल्वर की होती है।
इस मैटेलिक स्ट्रिप को खास तकनीक से नोटों के भीतर प्रेस किया जाता है। जब आप इन्हें रोशनी में देखेंगे तो ये स्ट्रिप आपको चमकती हुई नजर आएंगी। आमतौर पर दुनिया की कुछ कंपनियां ही इस तरह की मैटेलिक स्ट्रिप को तैयार करती हैं। माना जाता है कि भारत भी अपनी करेंसी के लिए इस स्ट्रिप को बाहर से ही मंगाता है।