नई दिल्ली। जल, वायु और ध्वनि light pollution प्रदूषण के बारेे में तो आपने कई बार सुना होगा। इसके बारे में हम बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है लाइट भी प्रदूषण फैलाती है? यदि नहीं तो आज जान जाइए। क्योंकि आपके घरों की लाइट इतनी ज्यादा खतरनाक है कि आप रोशनी भी पहचान नहीं कर पाएंगे।
इस स्टडी में हुआ खुलासा
वर्ष 2016 में वर्ल्ड एटलस ऑफ आर्टिफिशियल नाइट स्काई ब्राइटनेस नाम की एक स्टडी जारी की गई थी। जिसके बताया गया था कि दुनिया की 80 प्रतिशत शहरी लोग स्काईग्लो पॉल्यूशन के प्रभाव में है। इसका असर इतना ज्यादा होता है कि आपकी कुदरती रोशनी और बनावटी रोशनी में फर्क करने की क्षमता क्षीण हो जाती है। टेक्नीकल भाषा में सामान्य रूप से समझे तो इसे लाइट पॉल्यूशन औद्योगिक सभ्यता का साइड इफेक्ट है। ये फैलता कहां से इस बात को समझे तो हम अपने घर के चारों ओर जितनी भी लाइट्स का उपयोग करते हैं ये सब लाइट प्रदूषण का कारण बनती हैं।
इनमें एक्सटीरियर और इंटीरियर लाइटिंग, एडवर्टाइजिंग, कॉमर्शियल प्रॉपर्टिज, ऑफिस, फैक्ट्री, स्ट्रीटलाइट और रातभर जगमगाते स्पोर्ट्स स्टेडियम शामिल सभी शामिल हैं। इनकी चमक इतनी ज्यादा होती हैं। कि ये इंसान तो क्या जानवरों तक की जिंदगी को खतरें में डाल सकती है। ये अधिक खर्च के बाद आसमान में विलीन हो जाती हैं। अगर तकनीकों का उपाय कर इसे सिर्फ सीमित स्थान तक ही उपयोग किया जाए तो इस प्रदूषण को फैलने से रोका जा सकता है।
क्या है लाइट पॉल्यूशन
पानी, हवा और जल प्रदूषण के बारे में आप बचपन से पढ़ते आ रहे हैं। आज हम आपको रोशनी से होने वाले प्रदूषण के बारे में भी बताते हैं। साधारण शब्दों में कहें तो बनावटी या मानव निर्मित लाइट का हद से अधिक उपयोग करना लाइट पॉल्यूशन कहलाता है।
इतने तरह के होते हैं लाइट पॉल्यूशन
ग्लेयर –
रोशनी की बहुत ज्यादा चमक जिससे आंखें चौंधियाने लगती हैं। अगर थोड़ी सी भी लाइट की कमी हो जाती है तो अंधेरा सा महसूस होने लगता है।
स्काईग्लो –
घनी बसावट वाले इलाकों में रात के अंधेरे में भी आसमान का चमकना।
लाइट ट्रेसपास-
जिस जगह पर लाइट नहीं है उस जगह पर भी लाइट का पड़ना।
क्लटर-
एक साथ कई चमकदार लाइटों का किसी एक स्थान पर पड़ना।
इस देश के लोग सबसे ज्यादा हैं प्रभावित
अमेरिका और यूरोप के 99 प्रतिशत लोग प्राकृतिक लाइट और आर्टिफिशियल लाइट में अंतर नहीं कर पाते हैं। यह सब केवल लाइट प्रदूषण के कारण हो रहा है। उन्हें नहीं पता सूर्य की रोशनी और बल्ब की रोशनी में क्या अंततर है। कारण यही है कि वे 24 घंटे बनावटी रोशनी में रहते हैं। इन लोगों की अंधेरे न रहकर किसी न किसी प्रकार की आर्टीफिशियल रोशनी में रहने की आदत ही इनकी सेहत का दुश्मन बन गई है।
यहां से ले सकते हैं पूरी जानकारी
अगर आप भी प्रदूषण के बारे में विस्तार से जानकारी चाहते हैं तो गूगल अर्थ पर ‘ग्लोब एट नाइट इंटरेक्टिव लाइट पॉल्यूशन मैप’ की जानकारी देख सकते हैं। जिसमें धरती का अस्तित्व 3 अरब साल का बताया जाता है। जिसमें रोशनी और अंधेरे का एक तालमेल है। दोनों तत्व मिलकर ही धरती को संभालते आ रहे हैं। इस रोशनी में सूर्य, चंद्रमा और तारों, तीनों की रोशनी को शामिल किया गया है।
ये होता है सेहत पर असर
रात के अंधेरे के बाद दिन की रोशनी का इंतजार हुआ करता था। लेकिन आर्टीफिशयल लाइट ने रात और अंधेरे का कॉनसेप्ट ही खत्म कर दिया है। इससे कुदरती रात और दिन को पूरी तरह से तहस-नहस हो गया है। इसने पर्यावरण को असंतुलित करके रख दिया है। इसका असर यह होता है कि रात को अत्यधिक रोशनी के चलते नींद नहीं आती। सुबह—सुबह घरों में कुदरती रोशनी का प्रवेश न हो पाने के कारण ठीक समय पर नींद भी नहीं खुलती। जिसका सीधा असर हमारी सेहत पर भी पड़ता है।
सेहत पर असर
2016 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ आर्टिफिशियल नाइट स्काई ब्राइटनेस नाम की एक स्टडी बताती है कि दुनिया की 80 परसेंट शहरी आबादी स्काईग्लो पॉल्यूशन के प्रभाव में है। इससे प्रभावित लोग कुदरती रोशनी और बनावटी रोशनी में फर्क महसूस नहीं कर पाते।