छत्तीसगढ़,बालोद । बेबसी लाचारी लंगड़े को भी चलना सीखा देती है यह तो आपने सुना ही होगा और पेट की भूख मिटाने रोटी तलाशने पर मजबूर कर देती है। रास्ते में कितने भी कांटे हो लेकिन मंजिल तक पहुंचने का जुनून कांटे पर भी चलना सीखा देता है। कहानी वनांचल ग्राम पेटेचुआ की रहने वाली असवन्तिन नरेटी की है जो एक पैर से विकलांग है। इसी भूख की आग ने पैर से विकलांग युवती को भी चलना सीखा दिया। कुछ ऐसे ही कहानी आदिवासी ब्लॉक डौंडी क्षेत्र की है। जहां पैर से विकलांग एक युवती को शासन-प्रशासन से सहारा तो नहीं मिला लेकिन लकड़ी को सहारा बनाकर रोज 10 किलोमीटर पैदल चलकर अपनी जिंदगी चला रही है। मामला बालोद के जनपद पंचायत डौंडी का है। विकलांग युवती असवन्तिन नरेटी रोजाना लकड़ी के सहारे 10 किलोमीटर का सफर तय करती है।
घर में चार भाई हैं लेकिन वह परिवार में मस्त
डौंडी की रहने वाली असवन्तिन जन्म से ही विकलांग है। माता-पिता दस साल पहले वृद्ध होने के चलते बेटी असवन्तिन नरेटी को अकेला छोड़ दुनिया को अलविदा कहकर चले गये। घर में चार भाई हैं लेकिन चारों की शादी हो चुकी है और वह अपने परिवार में मस्त है। असवन्तिन ने जिन्दगी से हार नहीं मानी और लाठी को अपना सहारा बना लिया। लिहाजा वो खुद का गुजारा करने के लिए बिहान योजना के तहत जनपद पंचायत डौंडी में काम करती है। काम पर आने के लिए 5 किलोमीटर पैदल चलकर आती है और शाम को पैदल चलकर घर जाती है।
10 किमी रोज लकड़ी को सहारे चलती है पैदल
कई बार उसने अधिकारियों से ट्राईसाइकिल की मांग की लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला। रोजाना 10 किलोमीटर का सफर तय कर अपनी जिंदगी गुजार रही है। विकलांग होने के बावजूद जिन्दगी चलाने के लिए असवन्तिन ने बिहान योजना के तहत काम करने की शुरूआत की और अभी जनपद पंचायत डौंडी में कार्य कर रही है लेकिन विडंबना यह है कि उनके गांव से मुख्य मार्ग का दायरा 5 किमी दूर है और उसके पास चलने के लिए कोई संसाधन भी नहीं है। पैदल लड़खड़ाते हुए दिव्यांग युवती हर दिन जिला प्रशासन के आला अफसरों के सामने से गुजरती है लेकिन आज भी वह अफसरों की नजर से ओझल है।