नई दिल्ली। आपने कई ऐसे मंदिरों के बारे में सुना होगा जो एक विशेष Vanshi Narayan Temple of Uttarakhand अवसर पर ही खोले जाते हैं। इन्हीं में शामिल हैं उत्तराखंड का वंशी नारायण मंदिर। जिसके खुलने का इंतजार हर बहन को होता है। वर्ष के 364 दिनों तक बंद रहने के बाद इसे केवल रक्षाबंधन पर ही खोला जाता है।
आइए जानते हैं मंदिर के वर्ष भर बंद रहने का रहस्य और राखी के दिन ही खुलने का राज।
उत्तराखंड में स्थित है ये मंदिर
केवल राखी पर खुलने वाला यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। जिसका नाम वंशी नारायण मंदिर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पांडव काल में इसका निर्माण हुआ था। वर्ष भर बंद रहने के बाद इस मंदिर के पट केवल रक्षाबंधन के दिन ही खोले जाते है। उस दिन भी सूर्यास्त के पहले तक ही पूजा-अर्चना किये जाने का नियम है। मान्यता अनुसार देवर्षि नारद 364 दिन नारायण भगवान की पूजा— अर्चना करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन ही आज भक्तोें को यहां पूजन करने का अधिकार है।
10 फीट ऊंचाई पर बना है मंदिर
10 फिट ऊंचाई पर बने इस मंदिर के गर्भगृह का आकार चोकोर यानि वर्गाकार है। कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर को भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्रतिमा में भगवान विष्णु और भोलेनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं।
इसलिए है एक दिन की पूजा का अधिकार
आपको पता है इस मंदिर में एक ही दिन पूजा की इजाजत क्यों हैं। नहीं तो हम आपको बताते हैं। दरअसल एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बनें। भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार किया। जिसके बाद वे राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए।
भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण मां लक्ष्मी चिंतित हो गई और वह नारद मुनि के पास गई। वहां उन्होंने नारद मुनि से भगवान विष्णु के बारे में पूछा। जिसके बाद नारद मुनि ने मां लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और द्वारपाल बने हुए हैं।
तब मां चिंतित हो गईं और नारद मुनि से भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय पूछा। देवर्षि ने कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान विष्णु को वापस लाने का वरदान मांग लें। इस पर माता लक्ष्मी ने कहा कि मुझे पाताल लोक जाने का रास्ता नहीं पता क्या आप मेरे साथ पाताल लोक चलेंगे।
इस पर उन्होंने माता लक्ष्मी के आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह उनके साथ पाताल लोक गए।इसी कथा के अनुसार मां लक्ष्मी के साथ नारद मुनि के पाताल लोक जाने के बाद कलगोठ गांव के जार पुजारी ने वंशी नारायण की पूजा की। तभी से यह परंपरा शुरू हुई
हर घर से आता है मक्खन
रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के हर घर से भगवान नारायण के भोग के लिए मक्खन आता है। जिससे प्रसाद किया जाता है। इस अवसर पर मंदिर में भगवान नारायण का श्रृंगार भी होता है। गांव के लोग भगवान नारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं। सभी के कल्याण और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।