नई दिल्ली। चेक बाउंस होने के बारे में आपने अक्सर सुना होगा। या इस चीज को फेस भी किया होगा। जब आप कोई चेक लेकर बैंक में पेमेंट करने जाते हैं तो बैंक उसे यह कह कर रिजेक्टर कर देता है कि ये चेक बाउंस हो चुका है। हालांकि, यह कई वजहों से हो सकता है। लेकिन ज्यादातर मामलों में खाते में पर्याप्त राशि नहीं होने पर ही चेक बाउंस होता है। इसके अलावा चेक पर साइन में अंतर होने पर भी बाउंस हो जाता है।
चेक बाउंस होने पर इन नियमों का करें पालन
चेक बाउंस होने पर पेनल्टी के तौर पर अकाउंट से राशि काटती है। इसके अलावा चेक बाउंस होने पर आपको देनदार को इसकी सूचना देनी होती है। ऐसे में उस व्यक्ति को आपको एक महीने के अंदर भुगतान करना होता है। यदि देनदार एक महीने के अंदर भुगतान नहीं करता है तो उसको लीगल नोटिस भेजा जा सकता है। अगर इसके 15 दिन बाद भी वह कोई जवाब नहीं देता है तो उसके खिलाफ Negotiable Instrument Act 1881 के सेक्शन 138 के तहत केस केस दायर किया जा सकता है
चेक बाउंस होना दंडनीय अपराध
बतादें कि चेक बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है और इसके लिए धारा 138 के तहत केस दर्ज होता है। इसमें भारी जुर्माना या दो साल तक की सजा या दोनों का प्रावधान है। अगर चेक बाउंस होने का कोई मामला सामने आया है और देनदार के उपर धारा 138 के तहत केस दर्ज है, तो ऐसे में उसे 2 साल की सजा और ब्याज के साथ लेनदार को रकम लौटनी पड़ सकती है।
तीन महीने के अंदर चेक को कैश करा लेना चाहिए
चेक के बाउंस होने की स्थिति में बैंक आपको एक रसीद देते हैं। इस रसदी में चेक बाउंस होने की वजह वजह बताई जाती है। आपको यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि किसी भी चेक की वैधता तीन महीने तक रहती है। उसके बाद उसकी समय सीमा समाप्त हो जाती है। इसलिए चेक मिलने के 3 महीने के अंदर ही उसे कैश करा लेना चाहिए।