नई दिल्ली। आप सभी ये बहुत अच्छी Nagpanchmi 13 August तरह से जानते हैं कि नाग देवता भगवान शिव के गले का हार हैं। हर किसी के मुंह से ये भी सुना होगा कि धरती—पृथ्वी इनसे भरी पड़ी है। पंडित रामगोविन्द शास्त्री के अनुसार पुराणों में कई नागों खासकर वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कार कोटक, नागेश्वर, धृतराष्ट्र, शंख पाल, कालाख्य, तक्षक, पिंगल, महा नाग आदि का काफी वर्णन मिलता है। पर क्या आप जानते हैं कि शेषनाग की उत्पत्ति कैसे हुई। यदि नहीं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं इनसे जुड़ी कुछ बातें, कि आखिरकार इनकी मां कौन हैं, ये कैसे धरती पर आए।
कश्यप मुनि के वरदान से हुई थी शेषराग की उत्पत्ति
राजा दक्ष प्रजापति ने अपनी दो पुत्रियों कद्रू और विनता की शादी कश्ययय मुनि से की थी। एक बार कश्यम मुनि से खुश होकर दोनों पत्नियों से वरदान मांगने को कहा। जिस पर कद्रू ने बलशाली पराक्रमी सर्पों की मां बनने का वरदान मांगा। विनता ने कद्रू से अधिक शक्तिशाली केवल दो पुत्रों की मां बनने का ही वरदान मांगा। जो कद्रू के पुत्रों से अधिक सुंदर भी हों। कद्रू ने 1000 और विनता ने 2 अंडे दिए। समय आने पर कद्रू के अंडों से 1000 सर्पों का जन्म हुआ।
इनके अवतार हैं शेषनाग
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण और श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम दोनों ही शेषनाग के अवतार थे। ब्रह्माजी की कृपा से शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया। क्षीरसागर में भी भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं।
जानिए शेषनाग को किसने दिया था पृथ्वी को स्थिर करने का वरदान
शेषनाग कद्रू के सभी बेटों में सबसे शक्तिशाली था। इन्हें अनंत के नाम से भी जाना जाता है। मां कद्रू और भाइयों के द्वारा विनता के साथ छल किए जाने पर शेषनाग सबकुछ त्याग कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी विचलित नहीं होगी। चूंकि शेषनाग पराक्रमी थे इसलिए उन्होंने निरंतर हिलती—डुलती पृथ्वी को स्थिर करने के लिए अपने फन पर धारण करने के लिए भी कहा।