नई दिल्ली। हाल ही में ब्रिटेन की एक अदालत ने भगोड़े विजय माल्या को दिवालिया घोषित कर दिया था। कोर्ट के इस फैसले को भारत के लिए राहत की बात बताया जा रहा है। क्योंकि किंगफिशर के ऊपर बकाए कर्ज की वसूली को लेकर वैश्विक स्तर पर उनकी सम्पत्तियों की जब्ती की कार्रवाई कराने का रास्ता साफ हो गया है। ऐसे में जानना जरूरी है कि भारत में दिवालियापन को लेकर क्या कानून है और दिवालिया घोषित होने के बाद क्या होता है?
दिवालियेपन का अर्थ क्या है?
दिवालियेपन के संबंध में कानून क्या है, यह जानने से पहले हम यह जान लेंगे कि दिवालियेपन का अर्थ क्या है। दरअसल, किसी भी व्यक्ति को दिवालिया तभी माना जाता है, जब उसे कानूनी तौर पर दिवालिया घोषित कर दिया जाता है। इसके लिए व्यक्ति कोर्ट में आवेदन कर सकता है। हालांकि, यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी व्यक्ति पर किसी और का कर्ज चढ़ा होना चाहिए और वह बिगड़ती वित्तीय स्थिति के कारण कर्ज चुकाने में असमर्थ हो, तभी वह कोर्ट में दिवालिया होने के लिए आवेदन कर सकता है।
दिवालियेपन को लेकर क्या कहता है भारतीय कानून
यानी साफ है कि दिवालियापन एक वित्तीय स्थिति है। दिवालिया किसी भी व्यक्ति या कंपनी को घोषित किया जा सकता है। भारतीय कानून के मुताबिक अगर कोई शख्स 500 रूपये का उधार भी नहीं लौटा सकता है तो आप उसके खिलाफ कोर्ट में दिवालियापन का मामला दर्ज करा सकते हैं। हालांकि, जब आप किसी को दिवालिया घोषित करने के लिए मामला दर्ज कराते हैं तो यह प्रक्रिया काफी पेचीदा हो जाती है।
दिवालिया घोषित होने पर क्या होता है?
अगर कानूनी तौर पर किसी व्यक्ति या कंपनी को दिवालिया घोषित किया जाता है तो अदालत उसकी संपत्ति को बेचने के लिए नियुक्ति अधिकारी को नियुक्त करता है। संपत्ति सेल होने के बाद मिली रकम को ऋणदाताओं के बीच बांट दिया जाता है। हालांकि, अगर किसी व्यक्ति को कोर्ट ने दिवालिया घोषित कर दिया है तो कर्ज देने वाली संस्था या व्यक्ति उसे बकाया चुकाने के लिए बाध्य नहीं करेगा।
संपत्ति से मिले पैसों का क्या होता है?
वहीं अगर किसी संस्थान या व्यक्ति को दिवालिया घोषित कर दिया गया है और उसकी संपत्ति को भी सेल कर दिया गया है, तो सेल से मिले रकम को पहले ऋणदाताओं में बांटा जाता है। उसके बाद आयकर बकाया भरा जाता है। सभी भुगतान करने के बाद अगर पैसा बचता है तो उसे केंद्र सरकार या राज्य सरकार में बांट दिया जाता है।