भोपाल। प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर ने जमकर कहर बरसाया है। कोरोना के प्रचंड दौर में दवाओं की काफी किल्लत रही। अब कैसीरिवीमैब यानी इमडेविमैब इस कोरोना के इलाज के लिए काफी कारगर साबित हो रही है। कोरोना से साहसिक लड़ाई में शहर के प्रख्यात चिकित्सक डॉ एस के वर्मा एवं ख्यातिप्राप्त गायनेकोलॉजिस्ट डॉ सुनीता वर्मा एक ऐसे योद्धा के रूप में हैं जिन्होंने प्रारंभिक लक्षणों के सामने आते ही टेस्ट कराया और नतीजा कोरोना पॉजिटिव आने पर तत्काल होम आइसोलेट हो गए। इसके साथ ही अपना ट्रीटमेंट चालू किया। चूंकि वे स्वयं एक डॉ. दंपत्ति हैं और केयर एन क्योर हॉस्पिटल के संस्थापक है, उनका ट्रीटमेंट उनके पुत्र क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट और हॉस्पिटल डायरेक्टर डॉ सिद्धार्थ वर्मा और अन्य डॉक्टरों की देख रेख में चालू किया गया। कोरोना जैसी बीमारी और उस पर उम्र और शुगर ब्लड प्रेशर हार्ट की बीमारी को देखते हुए डॉ. सिद्धार्थ वर्मा ने प्राम्भिक चिकित्सा के साथ साथ एक नए किस्म की मेडिसिन के उपयोग करने का फैसला लिया। डॉ सिद्धार्थ वर्मा ने बताया कि मेडिकल जगत में यह कैसीरिवीमैब यानी इमडेविमैब” के रूप में जानी जाती है। सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में यह मेडिसिन का प्रयोग पहली बार हमारे शहर में किया गया है। डॉक्टर सिद्धार्थ ने इसका उपयोग अपने माता पिता पर करने का फैसला लिया है।
ट्रंप को लग चुकी है यही दवा
इस मेडिसिन का सर्वप्रथम उपयोग उस वक्त अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर किया गया था और नतीजे काफी सकारात्मक थे। डॉ सिद्धार्थ वर्मा बताते हैं की उनके द्वारा यही दवा इस्तेमाल की गई। डॉ सिद्धार्थ वर्मा इस दवा के इस्तेमाल के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए बताया कि यह दवाई ऐसे मरीजों को दी जाती है जो कि सामान्य या सामान्य से थोड़ा अधिक माध्यम रूप से ग्रसित हैं। जिन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं है और जो हॉस्पिटल में भर्ती नहीं है। लेकिन इन मरीजों में हाई रिस्क कम्प्लीकेशन होने की संभावना बहुत ज्यादा है और हाई रिस्क जैसे की मोटापा, ब्लड प्रेशर की बीमारी, डॉयबिटीज़ कैंसर किडनी की बीमारी, ट्रांसप्लांट पेशेंट, प्रतिरोधक क्षमता का कम करने वाली दवाओं पर निर्भर मरीज़, हृदय रोग, सी ओ पी डी, सिकलिंग के मरीज, जन्मजात हृदय रोग, अस्थमा, कैंसर पीड़ित शामिल हैं। इन मरीजों का कोरोना होने पर गंभीर होने का खतरा काफी रहता है, यह दवाई इन मरीजों के इलाज़ में एवं किसी भी जटिलता के कारण हॉस्पिटल में भर्ती होने की आवश्यकता को 70% तक कम कर देती है। हलांकि यह दवाई वैक्सीन की जगह नहीं ले सकती क्योंकि वैक्सीन का अपना एक अलग महत्त्व है। यह दवाई 12 वर्ष से ऊपर के ऊपर बच्चों जिनका वजन 40 किलोग्राम से अधिक है के लिए भी कारगर है।
3-5 दिनों के अंदर लेना आवश्यक…
यह दवाई रिपोर्ट आने 3-5 दिन के अंदर ही लिया जाना आवश्यक है। मरीज के अधिक सीरियस हो जाने के पश्चात् अथवा रिपोर्ट आने के 5-7 दिन के बाद इस दवा का उपयोग प्राणघातक हो सकता है। यह इंजेक्शन मरीज़ को आई सी यू कैयर में रह कर डे केयर थैरेपी के रूप में लगवाना होता है और मरीज उसी दिन अपने घर वापस जा सकता है। यहां इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है की इंजेक्शन लगने के बाद भी मरीज को आइसोलेशन प्रोटोकॉल के सारे नियमों का पालन करना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन और हाथों को समय समय पर सेनिटाइज़ करना भी आवश्यक है। यहां यह बताना आवश्यक है कि अभी हाल ही में भारत सरकार ने इमर्जेन्सी उपयोग के लिए इसे अनुमति प्रदान की है, इसके पहले यह दवा अमेरिका, सिंगापुर यूरोपीय देशो और दुबई में प्रयोग की जा रही थी। वहां यह काफी कारगर सिद्ध हुई है और नतीजे काफी सकारात्मक मिले हैं, जिससे कोरोना के उपचार में एक नयी उम्मीद कि किरण दिखाई दी है।