नई दिल्ली। (भाषा) रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष (आरडीआईएफ) ने कहा कि भारत में हर साल स्पुतनिक वी वैक्सीन की 85 करोड़ से अधिक खुराक तैयार होंगी। भारत ने कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए स्पुतनिक वी के सीमित आपातकालीन इस्तेमाल को मंजूरी दी है। भारतीय दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने आपातकालीन उपयोग के लिए इस वैक्सीन को पंजीकृत किया है। यह वैक्सीन रूस में नैदानिक परीक्षणों को पूरा कर चुकी है, तथा भारत में तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षणों में इसके परिमाण सकारात्मक हैं। भारत में यह परीक्षण डॉ. रेड्डीज के साथ मिलकर किए गए।
India becomes 60th country to authorise Russian COVID-19 vaccine Sputnik V
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— ANI Digital (@ani_digital) April 13, 2021
भारत स्पुतनिक वी को मंजूरी देन वाला 60वां देश बना
आरडीआईएफ ने एक बयान में कहा कि करीब तीन आबादी वाले देशों में वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी मिल चुकी है और भारत स्पुतनिक वी को मंजूरी देन वाला 60वां देश है। बयान में कहा गया कि आबादी के लिहाज से भारत इस टीके को अपनाने वाला सबसे बड़ा देश है और वह स्पुतनिक वी के उत्पादन में भी अग्रणी है। डीसीजीआई ने कुछ शर्तों के साथ स्पुतनिक वी के सीमित आपातकालीन उपयोग को मंजूरी दी है। स्पुतनिक वी भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली तीसरी वैक्सीन है।
Sputnik V is indicated for active immunization in individuals ≥ 18 years of age & must be administered intramuscularly in 2 doses of 0.5 ml each with interval of 21 days. Has to be stored at -18°C & comprises 2 components I & II that aren't interchangeable: Union Health Ministry pic.twitter.com/dCu8Snu5Wf
— ANI (@ANI) April 13, 2021
रूसी वैक्सीन का असर 91.6 प्रतिशत तक है
इससे पहले डीसीजीआई ने जनवरी में पुणे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा निर्मित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन कोविशील्ड तथा भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी थी। आरडीआईएफ के सीईओ किरिल दिमित्रिव ने कहा कि वैक्सीन को मंजूरी एक बड़ा मील का पत्थर है, क्योंकि दोनों देशों के बीच स्पुतनिक वी के नैदानिक परीक्षणों और इसके स्थानीय उत्पादन को लेकर व्यापक सहयोग विकसित हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘रूसी वैक्सीन का असर 91.6 प्रतिशत तक है और ये कोविड-19 के गंभीर मामलों के प्रति पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराता है, जैसा कि प्रमुख चिकित्सा पत्रिका द लैंसेट में प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है।