खंडवा। भाजपा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के निधन के बाद से खंडवा लोकसभा सीट खाली पड़ी है। इस सीट के लिए चुनाव आयोग ने भले ही अब तक तारीख निर्धारित नहीं की हो लेकिन क्षेत्र में दोनों पार्टियों के दावेदार सक्रिय हो गए हैं। साल 1980 से यानी 41 साल बाद इस सीट पर एक बार फिर उपचुनाव की स्थिति बनी है। यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के दावेदार अपने- अपने मतदाताओं को लुभाने में जुट गए हैं। यहां अभी किसी भी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम नहीं बताए हैं।
इस सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग ने तैयारियां शुरू कर दीं हैं। आयोग ने यहां मुरैना से ईवीएम भेज दी हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यहां बंगाल चुनाव के बाद ही भाजपा और कांग्रेस के दावेदार तय किए जाएंगे। वहीं, दिवंगत नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन यह पहले ही कह चुके हैं कि उनकी उम्मीदवारी पार्टी ही तय करेगी। पार्टी ही सर्वोपरी है।
बंगाल चुनावों के भी जुड़ रहे तार…
यहां भाजपा के दावेदारों में हर्षवर्धन का नाम आगे बना हुआ है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक दावेदारों के नाम बंगाल चुनाव से भी जोड़कर देखे जा रहे हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार अगर बंगाल में भाजपा की सरकार बनती है तो बंगाल के चुनाव प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय को भी इस सीट से चुनाव लड़ाकर केंद्र में स्थान दिलवाया जा सकता है। वहीं प्रदेश प्रभारी संगठन में खंडवा के राजेश तिवारी का नाम भी चर्चा में आ रहा है। हालांकि यहां होने वाले उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों साइलेंट हैं।
इसको लेकर किसी प्रकार की हलचल नहीं दिखाई दे रही है। भाजपा में दिवंगत चौहान के बेटे हर्षवर्धन सहित कुछ नाम चर्चा में बने हुए हैं। वहीं कांग्रेस की तरफ से भी अरुण यादव का नाम सबसे आगे चल रहा है। गौरतलब है कि 2009 में अरुण यादव ने ही नंदकुमार सिंह चौहान को लोकसभा चुनावों में यहां से हराया था। इसके बाद 2014 और 2019 दोनों चुनावों में उन्हें नंदकुमार सिंह चौहान से हार का सामना करना पड़ा है।
खंडवा लोकसभा सीट का गणित
दरअसल, खंडवा लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें खंडवा, बुरहानपुर, नेपानगर, पंधाना, मांधाता, बड़वाह, भीकनगांव और बागली शामिल है। इन 8 विधानसभा सीटों में से 3 पर भाजपा, 4 पर कांग्रेस और 1 सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी का कब्जा है। 1980 के बाद यहां पहली बार उपचुनाव कराए जाएंगे। इससे पहले 1979 में यहां उपचुनाव कराया गया था। जिसमें जनता पार्टी के कुशाभाऊ ठाकरे ने कांग्रेस के एस.एन ठाकुर को हराया था। कुशाभाऊ बाद में बीजेपी के अध्यक्ष भी बने थे।
क्या है इस सीट का इतिहास
इस सीट से सबसे ज्यादा बीजेपी के नंदकुमार सिंह चौहान जीतने वाले सांसद हैं। यहां की जनता ने उन्हें 6 बार चुनकर संसद तक पहुंचाया था। खंडवा लोकसभा सीट पर सबसे पहला चुनाव साल 1962 में हुआ था। जिसमें कांग्रेस के महेश दत्ता ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 1967 और 1971 में भी कांग्रेस ने कब्जा जमाए रखा।
लेकिन साल 1977 में भारतीय लोकदल ने इस सीट पर कांग्रेस को हरा दिया। 1980 में कांग्रेस ने फिर से वापसी की और शिवकुमार सिंह सांसद बनें। आगला चुनाव भी कांग्रेस ने ही जीता। पहली बार इस सीट पर 1989 में बीजेपी ने जीत हासिल की। हालांकि बीजेपी ज्यादा दिनों तक यहां टिक नहीं पाई और साल 1991 में कांग्रेस ने फिर से इस सीट पर अपना कब्जा जमा लिया।