सागर। वैसे तो आपने बुंदेखण्ड के पुराने शिवमंदिरों के बारे में सुना होगा पर आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे मंदिर की जिसमें लोगों की विशेष आस्था है। bhuteshwar mandir sagar शमशान घाट के पास स्थित होने के कारण इसका नाम भूतेश्वर मंदिर पड़ गया। इस मंदिर की खास विशेषता यह भी है कि इसमें पिछले 25 वर्षोें से लगातार संकीर्तन चल रहा है। वैसे तो यह मंदिर कई वर्षों पुराना है पर इसके स्थापना का कोई अब तक इतिहास नहीं प्राप्त हो पाया है। कहा जाता है वहां एक छोटी मढ़िया थी। इसके बाद इसका धीरे—धीरे जीर्णोद्धार प्रारंभ हुआ। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण पाण्डेय से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मंदिर की स्थापना का कोई इतिहास नहीं है। पर इस मंदिर की गिनती सिद्ध मंदिरों में होती है।
निरंतर जारी है संकीर्तन
दद्दाजी की मृत्यु के बाद से ही ‘गौरी शंकर सीताराम जय पार्वती शिव सीताराम’ नाम का जाप पिछले 25 वर्षों से लगातार जारी हैं। कीर्तन के साथ ही यहां अखण्ड ज्योत भी जल रही है। शुरुआती दौर में मंदिर में लोग जाने से डरते थे। परंतु समय के साथ—साथ लोगों का डर कम हो गया। क्योंकि मंदिर के पास चिताएं जलती थीं। मंदिर की शिवपार्वती विवाह समिति के सदस्य दीपक मिश्रा ने बताया ऐसी किवदंती है कि सबसे पहले फतई दादा फिर ब्रजदासजी ‘दद्दाजी’ का यहां आना हुआ। उनके अनुसार भगवान यहां स्वयं—भू प्रगट हुए हैं।
74 वर्षीय एसपी मिश्रा ने बताया कि मंदिर के जीर्णोद्धार के समय हम लोगों ने स्वयं मंदिर में फावड़ा चलाया है। परिवार के बुजुर्ग दीनदयाल मिश्रा पेटी लेकर मंदिर के लिए पैसा जुटाते थे। मंदिर के समीप एक बावड़ी थी जिसके नाम से भी इस मंदिर को जाना जाता है। करीब 5 एकड़ के क्षेत्रफल में फैले इस मंदिर का जीर्णोंद्धार मिश्रा परिवार की करीब पांच पीढ़ियों द्वारा किया जाता रहा है। साथ ही शहर के और भी कई परिवार मंदिर के निर्माण में विशेष योगदान देते आ रहे हैं। मंदिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर मछरयाई स्थित दुर्गा मंदिर से भगवान शिव की बारात आती है। बसंत पंचमी पर पार्वती माता की लगुन लिखी जाती है जो मंदिर में रख्री जाती है। गुरुवार को मंदिर में भोलेबाबा की बारात सजेगी।