Mundeshwari Devi Temple: अक्सर ही आपने ये सुना होगा कि देवी-देवताओं को खुश करने या मन्नत पूरी होने पर मंदिरों में बलि दी जाती है। लेकिन बिहार में एक ऐसा मंदिर है जहां बलि देने की अनोखी परंपरा है। इसके जरिए सीख भी दी जाती है कि बिना रक्त बहाए बलि देकर भी आप देवी को खुश कर सकते हैं।
1900 सालों से हो रही है पूजा
दरअसल हम बात कर रहे हैं बिहार के कैमूर जिले में स्थित मां ‘मुंडेश्वरी’ मंदिर (Mundeshwari Temple) की। यह मंदिर जिले के रामगढ़ गांव में है। बिहार के सर्वाधिक प्राचीन मंदिरों में से एक यह मंदिर भगवानपुर अंचल के 608 फीट ऊंची ‘पवरा’ पहाड़ी पर स्थित है। कहा जाता है कि यहां लगभग 1900 सालों से लगातार पूजा होती आ रही है।
मंदिर में पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है लेकिन उसका वध नहीं किया जाता है। बलि की यह परंपरा पूरे देश में और कहीं नहीं है। कहा जाता है कि, शुरू से ही इस मंदिर में बकरे की बलि देने की परंपरा रही है, लेकिन बड़े ही अनोखे तरीके से बलि चढ़ाई जाती है जिसमें एक बूंद भी रक्त नहीं बहता।
इस अनोखे तरीके से देते हैं बलि
कहते हैं कि, जब किसी की मन्नत पूरी होती है तो वह प्रसाद के रूप में बकरे को माता के मूर्ति के सामने लाता है। तब पुजारी माता के चरणों से चावल उठाकर बकरे के ऊपर डाल देता है जिससे बकरा बेहोश हो जाता है। कुछ देर बाद फिर से बकरे के ऊपर चावल डाला जाता है जिससे बकरा होश में आ जाता है और उसे आजाद कर बलि स्वीकार कर ली जाती है। इस परंपरा के जरिए यह संदेश दिया जाता है कि माता रक्त की प्यासी नहीं है और जीवों पर दया करना माता का स्वभाव है।
पत्थर से बना अष्टकोणीय मंदिर
पुरातत्वविदों के अनुसार यहां से प्राप्त शिलालेख 389 ईसवी के बीच का है जो इसकी पुरानता को दर्शाता है। मुण्डेश्वरी मंदिर की नक्काशी और मूर्तियां उतरगुप्तकालीन हैं। यह पत्थर से बना अष्टकोणीय मंदिर है। मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की पत्थर से बनी भव्य और प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है।
पंचमुखी शिवलिंग भी है स्थापित
मंदिर में चार प्रवेश द्वार हैं जिसमें एक को बंद कर दिया गया है। इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग है। जिस पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ-साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है। मुख्य मंदिर के पश्चिम में विशाल नंदी की मूर्ति है, जो आज भी अक्षुण्ण है।