भोपाल. राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक भविष्य और प्रदेश में वर्चस्व आगामी उपचुनाव बहुत अधिक प्रभावित करने वाले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस छोडकर उनके साथ कई विधायक उपचुनाव नहीं जीत सके तो इसका सीधा असर सिंधिया के पॉलिटिकल कॅरियर पर पडेगा। इसे लेकर चिंतित सिंधिया इस समय चंबल क्षेत्र की सीटें जिताने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं।
सभी जानते हैं कि चंबल इलाके में सिंधिया परिवार का वर्चस्व लंबे समय से चला जा रहा है। आजादी के बाद भी इस राजघराने का राजनीतिक दबदबा बना रहा। राजमाता विजयराजे सिंधिंया भले ही भाजपा में रहीं, लेकिन उनके बेटे स्वर्गीय माध्वराव सिंधिया कांग्रेस में रहे और जनता ने उन्हें सर-माथे पर बिठाया।
राजनीतिक सूझबूझ और कौशल का दिया परिचय
वर्ष 2001 में उत्तर प्रदेश् के मैनपुरी जिले के भैंसरोली गांव में एक विमान दुर्घटना में पूर्व केन्द्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया की मृत्यु हो जाने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की; वर्ष 2002 के लोकसभा चुनाव में अपने भाजपा के राज सिंह यादव को करीब 450000 वोटों से हराकर सांसद बने। कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ और कौशल का परिचय दिया।
कांग्रेस में उपेक्षित महसूस करने पर 9 मार्च 2020 को कांग्रेस को अलविदा कह 11 मार्च 2020 को भाजपा का दामन थाम लिया। राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने करीबी रहे केपी यादव के सामने लोकसभा चुनाव में हारने का दंश् झेल रहे सिंधिया, कांग्रेस में उपेक्षा को नहीं पचा पा रहे थे।
दिग्विजय—सिंधिंया के दांव से हुए आउट
सियासी गणितज्ञ मानते हैं कि प्रदेश में कभी कांग्रेस का चमकता हुआ युवा चेहरा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी से बाहर धकेलने में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ कामयाब हुए। सियासी हल्कों में माना जा रहा है कि सिंधिया के कांग्रेस में रहते दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह और कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ का रास्ता साफ नहीं था। कांग्रेस को भविष्य में कभी सरकार बनाने का अवसर मिलता तो ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री की दौड में पहले दावेदार होते। दिग्विजय सिंह ने सिंधिया समर्थक मंत्रियों और विधायकों की नहीं चलने दी।
सिंधिया समर्थक पूर्व वन मंत्री उमंग सिंघार हों, पूर्व लोक निर्माण एवं पर्यावरण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा हों या उनके गुट का कोई और मंत्री—विधायक हो, दिग्विजय सिंह केन्द्रीय नेतृत्व को समझाने में सफल रहे कि सिंधिया प्रदेश में गलत माहौल बना रहे हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ् ने तो यहां तक कह दिया था, यदि सिंधिया सडक पर उतरना चाहते हैं तो उतर जाएं। कमलनाथ के इस बयान के कुछ दिनों बाद ही सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया था। सियासी सूत्रों की मानें तो दिग्गी राजा और कमलनाथ उपचुनाव में सिंधिया के प्रभाव को समेट देने के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं।
कॅरियर बचाने पूरा परिवार लगा रहा ताकत
सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक कॅरियर को बचाने के लिए उनका पूरा परिवार इस समय पूरा जोर लगा रहा है। ऐसा क्षेत्रीय जानकारों का कहना है। राजमाता विजयराजे सिंधिया की इच्छा था कि पूरा परिवार ही भाजपा में रहे, लेकिन वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया ने जनसंघ को छोडकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी। इससे पहले वे भी जनसंघ से सांसद चुने गए थे। वर्ष 2001 में विमान दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की मृत्यु होने के बाद 2002 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना सांसदीय सीट से चुनाव लडा और जीत हासिल की।
कांग्रेस अंदरूनी समीकरण बिगड जाने से उपेक्षित ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 9 मार्च 2020 को कांग्रेस छोडकर 11 मार्च 2020 को भाजपा ज्वाइन कर ली। उनकी दोनों बुआ वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भाजपा में हैं। बुआ के बेटे दुष्यंत सिंह भी झालावाड से सांसद हैं। इस समय उपचुनाव में एक ओर दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे दिग्गज नेता जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया का पॉलिटिकल कॅरियर खत्म करने के लिए उनके साथ कांग्रेस छोडकर आए नेताओं को चुनाव हराने के लिए एडी—चोटी का जोर लगा रहे हैं, वहीं उनका पूरा परिवार चंबल क्षेत्र में पूरा जोर लगाकर समर्थकों को जिताने के प्रयास में है।
सिंधिया के राजनीतिक कॅरियर पर एक नजर
— 2002 में गुना संसदीय सीट से साढे चार लाख मतों से विजयी हुए।
— 2002 में वित्त मामलों की समिति और विदेश मामलों की समिति के सदस्य बने।
— 2008 में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राज्यमंत्री।
— 2009 में 15वीं लोकसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए।
— 2009 में केन्द्रीय वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री बनाए गए।
— 2012 में केन्द्रीय उर्जा राज्यमंत्री बनाए गए।