लोकेशन – गरोठ(मंदसौर)
गांधी सागर बांध स्थापना स्टोरी
62 साल का हुआ गांधी सागर बांध, बिना मशीनरी के बना था,1685 फिट लंबा 204 फीट ऊंचा बांध,लागत 13.60 करोड़
एशिया का पहला मानव निर्मित बांध बिना मशीन के तैयार हुआ है, पारंपरिक औजार और 07 नदियों पर बना, बांध 62 साल पूरा कर चुका है। बांध को बनाने में 06 साल लगा, जिसकी योजना 1950 में बनी थी, शिलान्यास 1954, और सन 1960 में इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था। 19 नवंबर 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री के हाथों से देश को समर्पित किया था। 19 नवंबर की तिथि उनकी पुत्री इंदिरा गांधी की जन्म तिथि होने कारण चुनी गई थी। बांध का मॉडल खड़गवासल रिसर्च इंस्टिट्यूट पूना द्वारा बनाया गया था। बांध की लागत 13.60 करोड़ आयी थी। कम खर्च और कम लागत से बने बांध चीफ इंजीनियर को पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया था।
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित गांधीसागर बांध शनिवार को 62 साल का हो गया है। इसे बनाने में किसी भी मशीन का उपयोग नहीं किया गया है। इसका काम पारंपारिक औजार से हुआ था। यही कारण है कि इसे एशिया की पहले मानव निर्मित बांध होने का गौरव प्राप्त है। गांधी सागर बांध भारत की चंबल नदी पर निर्मित 04 प्रमुख बांधों में से एक है। यह बांध मंदसौर से 150 किलोमीटर दूर गरोठ विधानसभा में है।
यह बांध तत्कालीन चीफ इंजीनियर एके चार, एग्जक्यूटिव इंजीनियर सीएच सांघवी, सिविल इलेक्ट्रिकल शिवप्रकाशम के मार्गदर्शन में बना था। कार्य की गुणवत्ता व एशिया में सबसे कम खर्च और सबसे कम समय में बांध पूर्ण होने पर चीफ इंजीनियर को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। अब यह बांध बिजली उत्पादन से लेकर सिंचाई योजना का जनक और पर्यटन का हब भी बन रहा है।
इंदिरा गांधी के जन्मदिन के कारण तय की थी यह तिथि 9 नवंबर 1960 को बांध तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश को समर्पित किया था। यह तिथि उनकी बेटी इंदिरा गांधी की जन्मतिथि के कारण चयन की गई थी। बांध की योजना 1950 में बनी थी। बांध का मॉडल खड़गवासल रिसर्च इंस्टिट्यूट पुणे द्वारा बनाया गया था। बांध का शिलान्यास 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था। बाध 06 साल में बनकर तैयार हुआ। इसकी लागत करीब 13.60 करोड़ आई थी। बांध को शुरू में से चंबल घाटी परियोजना चंबल वैली प्रोजेक्ट का नाम दिया गया था। जिसे 04 चरणों में पूरा किया जाना था। प्रथम चरण में गांधीसागर बांध, दूसरे चरण में राणाप्रताप सागर, रावतभाटा, तीसरे में जवाहर सागर, कोटा डैम और तोते में कोटा बैराज। पहले तीनों बांधों से विद्युत उत्पादन और चौथे से सिंचाई का लक्ष्य रखा गया था। कुल मिलाकर इंटरनेशनल कंट्रोल बोर्ड के निर्देशन में मध्यप्रदेश में राजस्थान की धरती को एक सिंचाई परियोजना देना थी। बांध की लंबाई 1685 फीट, और ऊंचाई 204 फीट है। जलाशय का क्षेत्रफल 660 वर्ग मीटर है। बांध में 23025 वर्ग किमी का जल ग्रहण क्षेत्र है। बांध में 10 बड़े और 09 छोटे गेट हैं, बाध से करीब 06 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचाई होती है।
गांधी सागर बांध में 7 नदियां मिलती है, बांध निर्माण के दौरान सबसे अधिक नुकसान नीमच जिले ने झेला। बांध के निर्माण के समय अविभाजित मंदसौर जिले के 228 गांव डूब के कारण खाली कराएं थे, विभाजन के बाद 169 गांव नीमच में 59 गांव मंदसौर जिले के प्रभावित हुई। नीमच के रामपुरा बांध से कई लोग विस्थापित हुए, लेकिन कई इलाकों का भू-जलस्तर भी बढ़ा। मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा में बांध बनने के कारण इस बांध का सबसे ज्यादा फायदा राजस्थान को हुआ। राजस्थान में कई शहर में पेयजल की पूर्ति हो रही है रावतभाटा का परमाणु केंद्र इसी बांध के पानी पर निर्भर है। पानी की पूर्ति से लेकर यहां बनने वाली बिजली की पूर्ति भी राजस्थान हुई है। मध्य प्रदेश की सीमा में बांध होने के बाद भी अब गांधीसागर जिले में सिंचाई योजना ओर जलापूर्ति योजना आ रही है।
सैलानियों से लेकर जीवो को कर रहा आकर्षित गांधी सागर बांध अपने आप में अद्भुत है। विकसित होते क्षेत्र के चलते अब यह स्थान पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है वन्य क्षेत्र बेहतर होने के कारण यहा वन्यजीवों के लिए वातावरण अनुकूल है। ऐसे में वन्यजीवों को भी आकर्षित कर रहा है तो सिंचाई से लेकर जलापूर्ति कई बड़ी योजना भी बन रही है। गांधी सागर के चारों ओर फैली हरियाली हैं आने वाले व्यक्ति को प्रकृति के नजदीक ले जाती है। इतना ही नहीं वन्य क्षेत्र में औषधि वह कई दुर्लभ जड़ी बूटियां भी है।
बांध की खूबसूरती देख मोहित हुए थे यूनेस्को के प्रोफेसर, गांधी सागर बांध क्षेत्र में विकास की संभावना पर अध्ययन करने आए, यूनेस्को के प्रोफेसर बांध की खूबसूरती बनावट पर मोहित हो गए थे। जल संसाधन विभाग के 10 सदस्यों के आए थे, इस दौरान बांध का जायजा लिया था। यहां की भौगोलिक स्थिति है सुंदरता को देखकर उन्हें इतना मनमोहक कृति बनाने के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बधाई का पात्र बताया था।
जानिए बांध के बारे में-
योजना- मार्च 1950 में।
शिलान्यास- मार्च 1954 प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ने किया।
योजना पूरी- 19 नवंबर 1960 में 6 साल बनने में लगा।