भोपाल। आज हम स्टोरी ऑफ द डे में बात करने वाले हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस के कद्दावर नेता श्रीनिवास तिवारी (Sriniwas Tiwari) के बारे में। जिन्हें प्रदेश में ‘सफेद शेर’ के नाम से भी जाना जाता था। लोग प्यार से उन्हें दादा श्रीनिवास बुलाते थे। उनसे जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जिसे आज भी लोग बड़े चाव से सुनाते हैं। विंध्य क्षेत्र के लिए सदैव खड़े रहने के कारण उन्हें विंध्य पुरुष भी कहा जाता है।
संसदीय मामलो के ज्ञाता थे
बोल्ड आवाज के धनी श्रीनिवास जब विधानसभा में अध्यक्ष थे तो उनका सदन और सरकार पर बराबर नियंत्रण था। वे संसदीय मामलो के ज्ञाता थे। उन्होंने इस पद पर रहते हुए स्वयं भी मर्यादा का पालन किया और सरकार को भी मर्यादा में रखना सिखाया। वो हमेशा से विंध्य प्रदेश को लेकर अवाज बुलंद की। जब विंध्य का विलय मध्य प्रदेश में किया गया था। उससे पहले सदन में हुए बहस में उन्होंने लगातार 5 घंटों तक अगल विंध्य के लिए भाषण देखर लोगों को हैरान कर दिया था। जब वो भाषण दे रहे थे तो पूरा सदन उनकी बातों को मौन होकर सुन रहा था।
अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी के बीच में थी प्रतिद्वंद्विता
श्रीनिवास तिवारी और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह (Arjun Singh) के किस्से भी आम है। दोनों नेता विंध्य क्षेत्र से आते थे। यही कारण है कि कांग्रेस में दोनों की प्रतिद्वंद्विता काफी आम थी। लेकिन, दोनों नेता एक-दूसरे की विद्वता का भी सम्मान करते थे। एक पार्टी में होने के बाद भी विंध्य क्षेत्र में दोनों नेताओं का अलग-अलग जनाधार था। इस कारण से दोनों नेताओं पर जातीगत राजनीति करने का भी आरोप लगता रहा।
दबंग आवाज के धनी थे श्रीनिवास
दिवंगत नेता श्रीनिवास की दो खासियत लोगों को हमेशा आकर्षित करती रही। एक उनका सफेद और भारी भौंहे और दूसरा उनका दबंग आवाज। वो जब बोलते थे तो सामने वाला उन्हें सुनने से रोक नहीं पाता था। जब वो सदन में भी बोलने के लिए खडे होते थे तो पूरा सदन उनकी बातों में खो जाता था। एक बार तो विधानसभा में बिजली चली गई और वो भाषण दे रहे थे। उनके जगह पर कोई और नेता होते तो वो बिना माइक के बैठ जाते। लेकिन श्रीनिवास ने भाषण देना जारी रखा और लोग उन्हें सुनते भी रहें।
फैसला लेने के लिए भोपाल आने का नहीं करते थे इंतजार
श्रीनिवास जब भी रीवा आते थे तो अपने आवास पर ही प्रदेश या क्षेत्र से जुड़े निर्णय लिया करते थे। वो कभी भी इसके लिए भोपाल पहुंचने का इंतजार नहीं करते थे। प्रशासन के लोग भी उनके इस कार्यशैली का सम्मान करते थे। रीवा में वह अपने आवास के बरामदे में एक तख्त पर बैठ जाते थे और वहीं से लोगों की समस्याओं का समाधान किया करते थे। सत्ता के लोग भी उन्हें वहीं फाइल दिखाया करते थे। तब राजनीतिक जानकार कहा करते थे कि प्रदेश में दो मुख्यमंत्री हैं। एक भोपाल में बैठते हैं और दूसरा रीवा मे।
पद की गरिमा का हमेशा रखा ख्याल
वो जब विधानसभा अध्यक्ष थे तो उन्होंने इस पद की गरिमा का हमेशा ख्याल रखा। वो अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी काम के लिए मुख्यमंत्री के कक्ष या बंगल तक नहीं गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) उनके पास ही मंत्रणा और निर्णय के लिए जाया करते थे। उन्होंने सरकार से लेकर विपक्ष तक को विधानसभा में मर्यादा का पाढ पढ़ाया। वो सदन में हर विधायक और मंत्री की बात ध्यान से सुनते थे। अगर कोई सदस्य अधूरा जवाब देता था तो उसे टोकते हुए वह स्वयं इसे पूरा कर देते थे।
समर्थक लगाते थे नारा
वहीं अगर उनके चुनावी सफर की बात करें तो साल 1998 के चुनाव में उनके लिए समर्थकों ने एक नारा दिया, जो पूरे प्रदेश में मशहूर हुआ। उनके समर्थक ग्रामीण मतदाताओं को लुभाने के लिए और उन्हे श्रीनिवास के जीत के प्रति आश्वस्त करने के लिए बघेली में एक नारा देते थे। ‘दादा न हो दऊ आय, वोट न द्या तऊ आय’ इसका हिंदी में मतलब था दादा नहीं भगवान हैं, वोट दे या नहीं जीतेंगे तो वही और हुआ भी कुछ ऐसा ही उन्होंने इस चुनाव में जीत हासिल की।