Video Game Addiction : देशभर समेत मध्यप्रदेश में इन दिनों मासूम बच्चे ऑनलाइन गेम्स के नशे के शिकार हो रहे है। प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आए है जिनमें बच्चे एडिक्शन तक पहुंच चुके है। बात यहां तक पहुंच गई है कि कई परिजनों ने अपने बच्चों में वीडियो गेम एडिक्सन के चलते चाइल्ड हेल्पलाइन से संपर्क साधा। ऑनलाइन वीडियो गेम से बच्चों को खतरा तो बनता ही जा रहा है तो वही परिजनों की मुसिबते भी कम होने का नाम नहीं ले रही है। प्रदेश में कोरोना के मामलों की तरह मामले सामने आने लगे है।
खबरों के अनुसार बताया जा रहा है कि चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर पर ऐसे कई अभिभवकों ने संपर्क किया है जो अपने बच्चों के वीडियो गेम एडिक्सन से परेशान है। माता पिता का कहना है कि वीडियो गेम के चलते बच्चों में काफी परिवर्तन देखा गया है। बच्चों को वीडियो गेम के अलावा कुछ सूझता ही नहीं, यहां तक की उन्हें खाने पीने की भी परवाह नहीं है। बताया जा रहा है कि चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर पर दो काफी गंभीर मामले है।
सामने आए गंभीर मामले
पहला मामला तो हैरान कर देने वाला है। यहां एक मां जो पेशे से साइकेट्रिस्ट है लेकिन वह खुद अपने बच्चे के वीडियो गेम एडिक्शन से परेशान है। वह इतना परेशान हो चुकी है कि कभी कभी उन्हें डायल 100 को फोन करना पड़ जाता है, उन्हें चाइल्ड हेल्पलाइन की मदद लेनी होती है। लाख कोशिशों के बाद भी बच्चे इस एडिक्सन से दूर नही हो पा रहे है। वही दूसरा मामला उज्जैस से सामने आया है। यहो एक 11वीं कक्षा में पढ़ने वाला छात्र वीडियो गेम की लत का शिकार है। बताया जा रहा है कि बच्चा वीडियो गेम एडिक्शन का इतना शिकार है कि वह घर वालों के डांटने पर घर से भाग गया। बच्चे का कहना है कि वह अकेला रहेगा और खुद कमा के खाएगा। लेकिन वह वीडियो गेम खेलना नही छोड़ेगा।
प्रदेश में बैन होंगे वीडियो गेम
मध्यप्रदेश सरकार जल्द ही प्रदेश में वीडियो गेम पर बैन लगाने वाली है। प्रदेश सरकार के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी बीते दिनों राज्य में ऑनलाइन गेंमिंग पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर चुके है। उन्होंने कहा था कि गृह विभाग ने ऑनलाइन गेमिंग पर रोक लगाने के लिए कानून का मसौदा तैयार कर लिया है। ऑनलाइन गेमिंग को कानून के दायरे में लाया जाएगा।
क्या कहते है मनोचिकित्सक
राज्य सरकार का इस ओर ध्यान देना एक सराहनीय कदम है।बैन के साथ ही साथ हमें टेक्नोलॉजी के हाईजीनिक उपयोग हेतु जनजागरण अभियान चलाना होगा।स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना बेहद पेशेवर कदम हो सकता है।
डॉ सत्यकांत त्रिवेदी,वरिष्ठ मनोचिकित्सक, सदस्य सुसाइड प्रिवेंशन टास्क फोर्स