सिडनी। क्या यह संभव है कि दिमाग को चकमा देकर यह सोचने के लिए बाध्य किया जाए कि प्लेसीबो (मानसिक रूप से दर्द से राहत) दर्द कम करने में मदद करेगा? संकेत अच्छे हैं। दर्द, एक संवेदनात्मक अनुभव से अधिक है। यह एक आंतरिक प्रणाली है जो स्वयं को बचाए रखने से जुड़ी है। इसमें हमें सुरक्षित रखने की ताकत और यह सिखाने की क्षमता होती है कि अपने आसपास की दुनिया में हमें कैसे तालमेल बिठाना है। यह एक गर्म चूल्हे को छूने का पहला अनुभव है जो हमें रसोई में सावधान रखता है, एक चोट से ठीक होने की पहली शुरुआत, जो हमें मदद के लिए डॉक्टरों के पास ले जाती है, और हमें भविष्य के नुकसान के लिए रणनीति सीखने में मदद करता है। दर्द संवेदना से अधिक है, लेकिन इसमें भावनात्मक और संज्ञानात्मक घटक भी शामिल हैं। प्लेसीबो कोई दवा या प्रक्रिया हो सकती है जिससे मरीज को फायदा पहुंच सकता है।
दर्द के ये असंख्य आयाम न केवल इसके अनूठे व्यक्तिपरक अनुभव को जन्म देते हैं बल्कि प्लेसीबो प्रभाव उत्पन्न करने से शोधकर्ताओं और डॉक्टरों को भी मदद मिलती है। दर्द के संबंध में प्लेसीबो एनाल्जेसिया तब होता है जब मस्तिष्क को यह सोचने के लिए ‘‘धोखा’’ दिया जाता है कि एक निष्क्रिय पदार्थ दर्द को कम करने के लिए काम करेगा, और करता है। वास्तविक दर्द निवारक दवाओं का उपयोग किए बिना दर्द को कम किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण के तहत करीब 80 वर्षों से बड़े पैमाने पर शोध किया गया है। इसका प्रभाव पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान देखा गया था।
विवरण पर विवाद हो सकता है लेकिन प्लेसीबो प्रभाव की खोज तब की गई जब अमेरिकी डॉक्टर हेनरी बीचर के पास घायल सैनिकों का इलाज करने के लिए मॉर्फिन नहीं था, इसके बजाय उन्होंने एक स्लाइन दिया। घायलों को यह बताने के बाद कि स्लाइन वास्तव में मॉर्फिन था, और इसे एक समान तरीके से देते हुए, उन्होंने पाया कि कुछ सैनिकों ने दर्द के लक्षणों में कमी की सूचना दी। प्लेसीबो प्रभावों का अब व्यापक रूप से विभिन्न प्रकार की दशा में अध्ययन किया गया है, जिसमें उनकी संभावित क्लीनिकल उपयोगिता पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्लेसीबो शोध में पहली सफलता मनोविज्ञान के क्षेत्र से मिली, जहां यह दिखाया गया कि प्लेसीबो एनाल्जेसिया मुख्य रूप से क्लासिकल कंडीशनिंग और सुधार की अपेक्षाओं के संयोजन के माध्यम से बनता है।
जर्मन शोधकर्ता लिवेन शेंक और उनके सहयोगियों की 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक मरीज, जिसने किसी को दर्द निवारक क्रीम लगाते हुए देखा है, जब प्लेसीबो क्रीम उसे दी जाती है, तो उसे राहत का अनुभव होगा। मानव मस्तिष्क इमेजिंग अध्ययनों ने प्लेसीबो प्रतिक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद की है। अधिकतर क्लीनिक में प्लेसीबो पहले से मौजूद हैं, जो नियमित चिकित्सा उपचारों की प्रभावशीलता का समर्थन करने के लिए काम कर रहे हैं। इसी तरह, सम्मोहन के जरिए दर्द से राहत मिल सकती है। अब इसे मिथक नहीं कहा जा सकता है। दर्द, आखिरकार, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के विभिन्न भागों द्वारा निर्मित एक समग्र अनुभव है, न कि केवल ऊतक क्षति का परिणाम। मनोवैज्ञानिक तकनीकें और हस्तक्षेप जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में गतिविधि को संशोधित करते हैं, दर्द की धारणा को बदल सकते हैं।
क्लीनिकल सम्मोहन सत्र के दौरान एक प्रशिक्षित पेशेवर उच्च आंतरिक एकाग्रता (आत्म-विस्मृति, जिसमें व्यक्ति को पता नहीं चलता कि उसके चारों ओर क्या हो रहा है) जैसी स्थिति में लाता है और फिर रोगी को बेहतर भावनात्मक या शारीरिक कल्याण के लिए सुझावों के माध्यम से मदद करता है। वैज्ञानिकों को लंबे समय से पता है कि सम्मोहन दर्द को कम करने में प्रभावी है, लेकिन यह कैसे काम करता है? मस्तिष्क के दो क्षेत्र दर्द में शामिल होते हैं: सिंगुलेट कॉर्टेक्स और सोमाटोसेंसरी कॉर्टिस। एक अध्ययन सम्मोहन के दौरान सिंगुलेट कॉर्टेक्स में आए बदलाव का सुझाव देता है।
यह इस बात का प्रमाण है कि सम्मोहन मस्तिष्क क्षेत्रों में गतिविधियों को बदलकर दर्द की धारणा को बदल देता है। कुछ लोग दूसरों की तुलना में सम्मोहन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। एक व्यक्ति के सम्मोहित होने की क्षमता का स्तर जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक-पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होता है और यह विभिन्न स्थिति में भिन्न हो सकता है। दर्द को कम करने के लिए सम्मोहन, दर्द निवारक दवाओं की मात्रा और सर्जरी तथा चिकित्सा प्रक्रियाओं से जुड़े मानसिक संकट को कम कर सकता है। बहुआयामी दीर्घकालिक दर्द प्रबंधन में सम्मोहन का एक और महत्वपूर्ण अनुप्रयोग है।