नयी दिल्ली, 15 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि ‘लॉर्ड की तरह जी रहे’ पार्षदों एवं वरिष्ठ अधिकारियों समेत तीनों नगर निगमों के सभी गैर जरूरी एवं विवेकाधीन व्ययों को रोकने की उसकी मंशा है ताकि डॉक्टरों, नर्सों एवं सफाईकर्मियों समेत कोविड-19 के अग्रिम मोर्चा कर्मियों के वेतन एवं पेंशन का भुगतान किया जा सके।
उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए नगर निकायों को वरिष्ठ अधिकारियों के व्यय का ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया कि यह इन निगमों में किसी को अपने वेतन में कटौती करनी है तो वे हों और शुरुआत पार्षदों से हों।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान डॉक्टरों एवं नर्सों समेत स्वास्थ्यकर्मियों एवं सफाईकर्मियों, जो अग्रिम मोर्चे पर है, के वेतन भुगतान को वरिष्ठ अधिकारियों के भत्ते जैसे अन्य विवेकाधीन खर्चों से अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
अदालत ने कहा कि तीनों नगर निगमों के सभी गैर जरूरी एवं विवेकाधीन व्ययों को रोकने की उसकी मंशा है ताकि उस पैसे का इस्तेमाल इस कोविड- महमारी के दौरान अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर्मियों के वेतन एवं पेंशन का भुगतान करने के लिए किया जा सके।
अदालत ने कहा, ‘‘ शीर्ष के लोग लॉर्ड की तरह जी रहे हैं। एक बार उन्हें तकलीफ महसूस हो जाएगा तो चीजें अपने आप काम करने लगेंगी। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मी ही क्यों परेशान हों?’’
अदालत ने कहा कि वेतन एवं पेंशन के गैर-भुगतान के लिए धनाभाव का बहाना नहीं चल सकता है क्योंकि संविधान के तहत ये उनके मौलिक अधिकार हैं।
पीठ ने दिल्ली सरकार द्वारा निगमों को दिये गये पैसे में ऋण की राशि काट लिये जोन को नामंजूर कर दिया और कहा कि यहां तक भारतीय रिजर्व बैंक ने ऋण अदायगी और बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों द्वारा खातों को गैर निष्पादित संपत्तियां घोषित करने पर रोक लगा दी है।
अदालत इन तीनों निगमों के शिक्षकों, डॉक्टरों और सफाईकर्मियों समेत सेवारत एवं सेवानिवृत कर्मियों को वेन एवं पेंशन का भुगतान नहीं किये जाने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
भाषा
राजकुमार अनूप
अनूप शाहिद
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